दोस्तों,
पिलोनाइडल साइनस बीमारी के बारे में आप में से बहुत कम लोग जानते होंगे. अक्सर यह बीमारी मोटे लोगों में,
या जिनके कूल्हे पर अधिक मात्रा में बाल होते हैं, या वे मोटे लोग जो अधिकतर ऑफिस में बैठने का काम करते हैं, ऐसे लोगों में यह बीमारी होती है.
अब आप यह सोच रहे होंगे कि यह ऐसी कौन सी बीमारी है जो हमें नहीं पता.
दोस्तों यह वह बीमारी है जो अक्सर लोग एक दूसरे को बताने से शर्माते हैं. या फिर यह बीमारी उतनी भी दर्दनाक
नहीं होती जिसके लिए वह तुरंत डॉक्टर के पास जाकर इलाज करा ले .
इसीलिए यह बीमारी बढ़ती ही जाती है और आखिरकार हार कर मरीज को डॉक्टर के पास जाना ही पड़ता है.
तो आखिर यह बीमारी है क्या.What is pilonidal sinus ?
दोस्तों इस बीमारी में दोनों कूल्हे के बीच में ऊपरी जगह पर एक फुंसी बन जाती है. जिससे हल्का मवाद निकलने लगता है. आमतौर पर यह फुंसी दर्दनाक नहीं होती पर कभी-कभी अधिक मात्रा में इसके अंदर अगर मवाद बन जाए तो फिर काफी दर्दनाक हो सकती है.
आमतौर पर यह pus रोज थोड़ा थोड़ा निकलने लगता है और बीच में कुछ दिनों के लिए बंद भी हो जाता है.
पर कुछ दिन बंद रह कर फिर से उसमें pus निकलने लगता है. मरीज को अंडरवियर पर मवाद चिपका हुआ अक्सर दिखने लगता है या फिर उसको चिपचिपा महसूस होने लगता है. कभी-कभी तो दुर्गंध भी आती है.
इसी फुंसी को हम पीलोनीडल साइनस कहते हैं.
साइनस याने एक ऐसी नली होती है जो चमड़ी के अंदर गई होती है और उसका मुंह यानी चमड़ी के ऊपर की फुंसी होती है.
यह पूरी नली ही इंफेक्शन का सोर्स होती है. इसी नली में इन्फेक्शन बनता है और मवाद के रूप में बाहर निकलता है.
इंफेक्शन कहां से आता है.
अब आप सोच रहे होंगे कि इसमें इंफेक्शन कहां से आता है.
तो दोस्तों इसके इन्फेक्शन का मूल कारण आजू बाजू के अत्याधिक बाल होते हैं. अगर कोई घंटों तक चेयर पर बैठता है या घंटो तक कार या बाइक चलाता है तो ऐसे में उसके कूल्हे के बाल घर्षण की वजह से टूट जाते हैं. और वह दोनों कूल्हे के बीच में जमा हो जाते हैं.
इन बालों को शरीर का पसीना भी मिलता है और पसीना और बाल दोनों मिलकर एक प्रकार का इन्फेक्शन बनाते हैं.
जो कूल्हे के बीच में एक छेद बनाकर चमड़ी के अंदर जाता है. एक बार इंफेक्शन जाने के लिए अगर छोटी सी जगह मिल गई तो वह उसका घर बन जाता है और कंटिन्यूज उसमें बालों का इन्फेक्शन जमा होते रहता है.
यही इंफेक्शन pus बनके बाहर निकलता है. कभी-कभी इंफेक्शन एक ही जगह होता है पर चार-पांच जगह से फुंसी के द्वारा बाहर निकलता है. इसी बीमारी को pilonidal sinus कहते हैं.
इसके मुख्य कारण क्या है
1) मोटापा
2) शरीर पर अत्याधिक बाल होना
3) बहुत ज्यादा समय तक एक ही जगह पर बैठना या गाड़ी चलाना
4) आनुवंशिकता
अक्सर यही कारण सभी मरीजों में पाए जाते हैं इसके अलावा और कोई कारण देखने में नहीं मिलता.
यह बीमारी पुरुषों में अधिकतर पाई जाति हैं.
क्योंकि औरतों में शरीर पर बाल नहीं होते इसलिए शायद यह बीमारी उनमें देखी नहीं गई. चाहे स्त्री कितनी भी मोटी क्यों ना हो.
इसका पता होने पर किसको दिखाना चाहिए.
अगर आपको ऊपर बताए हुए लक्षणों में कोई भी एक लक्षण होता है तो आप सबसे पहले एक सर्जन को दिखाना चाहिए. सर्जन का मतलब एक general surgeon है जो एक एलोपैथी डॉक्टर होता है.
आप उसको दिखाएंगे तो सबसे पहले वह आप की जांच करेगा. आपके फुंसी के आजू-बाजू में कोई नली बनी
हुई है कि नहीं यह वह हाथ से दबा कर देखेगा. अंदर में कितना मवाद बना हुआ है यह भी देखने की कोशिश करेगा.
और उसे अगर ऐसा लगता है कि बीमारी बहुत ज्यादा बढ़ गई है तो आपको कुछ जांच करने की सलाह देना.
इस बीमारी के लिए क्या-क्या जांच होती है.
इसके लिए मुख्य जांच (M R I )होती है. इसके
द्वारा हम चमड़ी के अंदर जो नलिया बनती हैं उसे क्लीयरली देख सकते हैं. कितनी लंबी नलिया बनी है और
कितनी बनी है यह सब हम उससे देख सकते हैं. इन नालियों का का संबंध कही लैट्रिन की नली से तो नहीं,
यह भी समझ में आ जाता है. चमड़ी के अंदर कोई बहुत बड़ा मवाद का पैकेट बना हुआ है कि नहीं यह भी देखा जाता है. और रीड की हड्डी का निचला हिस्सा जो चमड़ी के अंदर रहता है, उसे कोई इंफेक्शन तो नहीं मिला यह भी देखा जाता है.
इसका इलाज क्या है
1) वाइड लोकल एक्सीजन
इस सर्जरी में जितने भी छोटे-मोटे छेद होते हैं उन सब को मिलाकर, पूरी चमड़ी को अंदर की नालियों के साथ निकाला जाता है. और फिर चमड़ी को ऐसे टांके लगाया जाता है कि वह टांके मध्य रेखा में न रहते हुए थोड़ा सा बाजू में रहे, ताकि बाल फिर से कूल्हे के बीच में जमा ना हो.
इस ऑपरेशन का सक्सेस रेट 80 परसेंट हो सकता है. और 20 परसेंट कैसेस में इसमें यह बीमारी फिर से होने के चांसेस होते हैं.
2) लेजर सर्जरी
इस सर्जरी में सभी बारीक नालियों को अच्छी तरह से पहले अंदर से ( currate ) साफ किया जाता है. फिर उसमें लेजर लाइट डालकर अंदर से जलाया जाता है. ऐसा करने के बाद नली पूरी तरह से सिकुड़ कर बंद हो जाती है.
इस ऑपरेशन के सक्सेस रेट 90 परसेंट होते हैं. और केवल 10 परसेंट लोगों में यह बीमारी फिर से होने के चांसेस होते हैं.(Recurrant pilonidal sinus)
3) Flap closure
यह सर्जरी केवल उन मरीजों में की जाती हैं जिसमें पिलोनाइडल साइनस बार-बार होते जाता है.
यह एक बड़ी सर्जरी है जिसमें कूल्हे के एक बाजू के हिस्से को कुछ काट कर दूसरी साइड के बाजू में जोड़ा जाता है ऐसा करने से बीच की कूल्हे की जगह मिट जाती है और यह बीमारी अपने आप खत्म हो जाती है. क्योंकि अगर इंफेक्शन
जमा होने के लिए कोई जगह ही नहीं बची तो इंफेक्शन जमा होने का सवाल ही नहीं उठता.
इस ऑपरेशन के सक्सेस रेट काफी अच्छे होते हैं. हम कह सकते हैं कि यह 95% सक्सेस होता है.
अब आप कहेंगे कि 5 परसेंट का क्या होता है. तो इसका जवाब है कि 5 परसेंट तो हर बीमारी में पॉसिबल होता है.
कोई भी ऐसा ऑपरेशन नहीं होता जिसमें हंड्रेड परसेंट सक्सेस रेट कहा जाता है. इसीलिए 95 रेट बहुत ही अच्छा माना जाता है.
पर यह केवल उन्हीं पेशेंट में किया जाता है जिनमें पहले नीडल साइनस बार-बार हो रहा.
क्या यह बीमारी आयुर्वेदिक क्षारसूत्र, होम्योपैथी या अन्य कोई दवाई से ठीक हो सकती है?
तो मेरा जवाब है कि नहीं.
क्योंकि क्षारसूत्र Fistula के लिए बनाई गई टेक्निक है. जिसमें नली के आर पार एक धागा डाला जाता है. इस बीमारी में नली को आर पार करना बहुत मुश्किल होता है. क्योंकि एक तरफ नली चमड़ी के ऊपर खुलती है तो दूसरी तरफ वह चमड़ी के अंदर जाकर बंद हो जाती है. इसलिए इस बीमारी में क्षारसूत्र का उपयोग करना नामुमकिन लगता है.
दूसरी ट्रीटमेंट थेरेपी यानी होम्योपैथी के बारे में मैं कुछ नहीं कह सकता. पर कोई भी दवाइयां लेने से किसी नदी के अंदर का मवाद खत्म होना और फिर नली धीरे-धीरे पूरी तरह बंद हो जाना, नामुमकिन लगता है. इसमें कोई साइंटिफिक तरीका मुझे नहीं लगता और इसीलिए मुझे ऐसा लगता है कि इस बीमारी में ऑपरेशन ही केवल इलाज है.
धन्यवाद !