Difference between Fissure & piles

            मेरे क्लीनिक में जितने भी मरीज पाइल्स के आते हैं उनमें से करीबन 70 परसेंट मरीज  fissure piles  के होते हैं.  जब मैं उनको यह बताता हूं कि आपको fissure हुआ है तो वह मेरी तरफ आश्चर्य से देखने लगते हैं . उनके इस चेहरे को देखकर मैं उनको फिशर के बारे में एक्सप्लेन करता हूं और उसके उपचार के बारे में बताता हूं.  पर जब मैं उनको पूछता हूं कि क्या आपने कभी भी इस बीमारी का नाम नहीं सुना, तो वह कहते हैं कि नहीं हमने इस बीमारी का नाम कभी भी नहीं सुना और ना ही किसी डॉक्टर ने हमको आज तक यह बताया कि आपको फिशर हुआ है.  सभी डॉक्टर आज तक हमें यही कहते रहे कि आपको पाइल्स हुआ है और इसीलिए हमने भी आज तक सिर्फ और सिर्फ पाइल्स का ही इलाज किया है. ( fisher piles are common conditions)

 

                यह सुनकर मुझे बहुत ताज्जुब होता है कि जनरल प्रैक्टिशनर जो छोटी ओपीडी में बैठते हैं उनको भी यह डिटेल ज्ञान नहीं है कि पाइल्स और फिशर में क्या अंतर है.  जब उन्हें पाइल्स और फिशर का फर्क नहीं समझ आता तो लोग कैसे समझ सकते हैं कि पाइल्स अलग है और फिशर अलग है और इनका ट्रीटमेंट भी अलग ही होता है.

 

                दुख की बात तो यह है कि मरीज सालों साल पाइल्स समझकर अपना इलाज करते रहते हैं और  फिशर की बीमारी से लड़ते रहते हैं. अगर उन्हें यह पता होता कि यह फिशर की बीमारी है जिसमें पाइल्स की दवाइयां काम नहीं करती है, तो शायद वो जल्दी ठीक भी हो सकते हैं.  लेकिन अपनी बीमारी को बेहतर ढंग से ना समझ कर वह अपनी बीमारी को सालों साल सहन करते रहते हैं और अपनी इस बीमारी को बढ़ाने में सहायक होते हैं.

 

            असल में देखा जाए तो फिशर की बीमारी यह पाइल्स की बीमारी से भी इलाज करने के लिए अच्छी होती है.  और इसका इलाज भी सक्सेसफुल होता है.  

            अगर आपके पास पाइल्स के 100 मरीज है तो उनमें से 70% लोग फिशर की बीमारी से त्रस्त रहते हैं.  उनमें से कम से कम आधे मरीज तो बहुत सालों से इस बीमारी को झेलते हुए रहते हैं और बाकी आधे मरीज दो-तीन महीने के अंदर ही डॉक्टर को दिखाने आते हैं.

 

                    अभी मैं आपको बताना चाहता हूं कि फिशर की बीमारी एक जनरल बीमारी होती है समझ लीजिए आपको हर साल चार-पांच दिनों के लिए सर्दी खासी होती है वैसे ही हर आदमी को, हर औरत को, अपने जीवन काल में कभी ना कभी प्फिशर  बनने की संभावनाएं रहती ही है.

फिशर क्यों होता है?

               यह एक जनरल बीमारी के तौर पर लेना चाहिए क्योंकि यह बीमारी अपने खाने पीने की आदत, अपनी लाइफ स्टाइल भागदौड़ वाली जिंदगी, जबरदस्ती लैट्रिन को जाना, लैट्रिन जाने में अनियमितता और हमेशा कॉन्स्टिपेशन की शिकायत रहना, इन आदतों की वजह से यह बीमारी अक्सर होती है.  बाकी भी कुछ ऐसे कारण होते हैं जिसमें यह फिशर की बीमारी होती है.  जैसे कि प्रेगनेंसी के दौरान या पेट में अन्य और कुछ बीमारी अगर होती है, जिसकी वजह से कॉन्स्टिपेशन होता है, तो यह बीमारी हो सकती है. 

              अन्यथा यह बीमारी होने के चांसेस जो है यह अपने लाइफस्टाइल की वजह से, खाने-पीने की आदतों की वजह से ही होने के चांसेस रहते हैं. 

              इस प्रकार यह कॉमन होती  है और इसका इलाज भी इतना ही सरल होता है . फिशर के 1 महीने के अंदर अगर अच्छी तरीके से दवाई का इलाज किया जाए तो यह बीमारी ऑपरेशन  तक पहुंचती ही नहीं है.  उसके पहले आपका फिशर खत्म हो जाता है. और आप इसे निजात पा सकते हैं.

fisher piles
piles and fissure

 

हम कैसे समझे कि हमें पाइल्स हुआ है या फिशर.

 

                 यह सवाल आप सभी के मन में आ सकता है. पर यह बहुत आसान है. आमतौर पर पाइल्स की बीमारी में ब्लड जाता है और दर्द नहीं रहता. इसके उल्टा फिशर की बीमारी में दर्द रहता है पर बहुत कम बार खून जाता है.

                      इसमें याद रखने वाली बात यह है कि अगर आपको खून जाता है और दर्द नहीं रहता तो यह पाइल्स है और खून जाता है और दर्द भी होता है तो यह फिशर  है.

                दूसरी बात इसमें याद रखने लायक यह है कि अगर आपको शौच के बाद अत्याधिक जलन होती   रहती हैं, आपको लैट्रिन की जगह पर दर्द होते रहता है, जो करीबन आधा घंटा या 1 घंटा बना रहता है, तो यह फिशर की बीमारी है.

                  अगर आपको लैट्रिन होने के बाद गाड़ी चलाने में, चेयर पर बैठने में, दर्द बना रहता है, अगर आपको दर्द नहीं है पर लैट्रिन की जगह पर जलन बनी रहती है, जो 1 घंटे से 3 घंटे तक  रह सकती हैं, तो यह कंडीशन भी फिशर की ही है.

                   अगर आपको कभी-कभी लैट्रिन के एक साइड में खून चिपका हुआ दिखता है, या फिर लैट्रिन होने के बाद 8-10 बुंदे खून की टपकते हुए नजर आती है, तो यह फिशर  है.

 

                  फिशर की बीमारी में अक्सर ऐसा होता है की ब्लड जाता है लेकिन वह रोज नहीं जाता. एक-दो दिन के लिए आपका ब्लड बंद हो सकता है, या फिर एक दो महीने के लिए भी ब्लड जाना बंद हो सकता है.

                 इसमें नोट करने वाली बात यह है कि लैट्रिन में खून जाना लैट्रिन होने के बाद शुरू होता है.  यानी जैसे आप अपनी लैट्रिन पास करते हैं उसके बाद आपको लेट्रिन की जगह से कुछ खून की बूंदे टपकते हुए नजर आती है. तो यह भी फिशर का ही कारण है.

              अगर आपको लैट्रिन की जगह पर एक साइड में दर्द महसूस होता है. केवल एक साइड में पूरी चारों बाजू में दर्द नहीं है. तो यह भी फिशर ही माना जाता है. 

            आपको लैट्रिन के एक साइड में कुछ मस्सा हाथ में लगता है और जब आप इस मस्से को दबाते हैं या प्रेशर देते हैं तो वहां पर आपको अत्यधिक दर्द महसूस होता है. अगर ऐसा आपके साथ हो रहा है तो यह भी फिशर के लक्षण माने जाते हैं.

 

Fisher piles में क्या फर्क है?

 

             लेकिन फिर भी हम कैसे पहचाने कि मुझे फिशर ही हुआ है पाइल्स नहीं, पाइल्स में क्या होता है जो फिशर में नहीं हो सकता.

 

             पाइल्स में बिना दर्द के ब्लड निकलता है जो फिशर में नहीं निकलता.

                पाइल्स में  फिशर की तुलना में ज्यादा ब्लड जाता है. अक्सर लोग यह कहते हैं कि धार निकलती है. जबकि फिशर में जो ब्लड  जाता है वह बूंद बूंद टपक टपकने जैसा ब्लड जाता है. पर पाइल्स  में एक धार बन जाती है और बहुत ज्यादा खून जाता है.

            अगर आपको अंदर से लाल कलर के मस्से बाहर आते हैं जिनको लैट्रिन होने के बाद अंदर दबाकर डालना जरूरी हो जाता है. फिर ऐसे अंत मस्त बाहर जो हा दबा जड़.

               पाइल्स में अक्सर चारों बाजू में आपको हाथ को मस्से लग सकते हैं जबकि फिशर  में केवल एक ही बाजू में मस्सा हाथ को लगने की संभावनाएं रहती है.

 

            पाइल्स की बीमारी में अगर आपके मस्से बहुत ज्यादा बाहर निकले हुए हैं तो आपको बैठने में दिक्कत हो सकती है. पर फिशर की बीमारी में अगर आपको मस्से बने नहीं है या आपके मस्से बाहर निकले नहीं हैं फिर भी आपको बैठने में गाड़ी चलाने में दिक्कत होती है.

 

              मुझे तो लगता है कि आपको इतना कुछ खुद समझने की जरूरत नहीं है.  कुछ मेन मेन पॉइंट्स अब अगर आप ध्यान में रखते हो तो आप आसानी से पाइल्स और फिशर में फर्क कर सकते हो. और अगर आप संतुष्ट नहीं हो कि मुझे क्या हुआ है या आप चाहते हो कि मेरा डायग्नोसिस एक कुशल डॉक्टर के द्वारा होना चाहिए तो आप एक एलोपैथी सर्जन डॉक्टर के पास जाना चाहिए जो आपका अंदर से जांच कर सके.    ऐसे डॉक्टर के पास आप कभी न जाए जो आपको सिर्फ पूछताछ से ही दवाइयां लिखकर दें. आपका डायग्नोसिस बनवा लें कि आपको पाइल्स हुआ है.

            जब तक आपकी अंदर से जांच नहीं होती यह देख पाना बहुत मुश्किल है कि आपको पाइल्स हुआ है या फिशर.  इसलिए आप ऐसे डॉक्टर के पास जाएं जो आपकी अच्छी तरह से पूरी जांच करवा सकें.

फिशर की जाँच fisher piles examination.

                   अब आप मुझे पूछेंगे कि क्या इस जांच करवाने के लिए कोई सीटी स्कैन या एक्सरे जैसी मशीन होती है.  या फिर पाइल्स की बीमारी जानने के लिए भी कोई सोनोग्राफी, एंडोस्कोपी होती है. आप सबका पूछना वाजिब है क्योंकि आज हर डायग्नोसिस के लिए कुछ ना कुछ जांच बनी हुई है.  और इन जांच के नतीजों पर ही हम डायग्नोसिस कर सकते हैं.  पर यह बीमारी में ऐसा नहीं है.  यह बीमारी एक कुशल एलोपैथी सर्जन द्वारा भी जांच करने से अच्छे से पता चल सकती है. एलोपैथी सर्जन अपने एग्जामिनेशन फीस में ही आपके एनल कैनल की प्रॉक्टोस्कॉपी द्वारा जांच करके यह पता लगा सकता है कि आपको फिशर हुआ है या पाइल्स. 

               पर इसमें भी एक गड़बड़ी दिखाई देती है.  कुछ डॉक्टर व्यवसाई लोग जो एलोपैथी ,आयुर्वेदिक, होम्योपैथी भी हो सकते हैं.  ऐसे डॉक्टर एक प्रॉक्टोस्कॉपी वीडियो  मशीन खरीद लेते हैं और यह दावा करते हैं कि इस मशीन से हम आपका डायग्नोसिस बेहतर बना सकते हैं.  लेकिन ऐसा नहीं है यह मशीन केवल जो चीजें आंखों को दिखाई देती है उनको ही वीडियो द्वारा आपके कंप्यूटर के मॉनिटर पर  दिखाती है. 

                  ऐसा नहीं है कि यह वीडियो से ही आपको कुछ अच्छा दिखाई देगा और आप अपने आंखों से यह चीजें नहीं देख सकते.  ऐसा बिल्कुल नहीं है.  जैसा कि मैंने पहले ही कहा है कि एक कुशल एलोपैथी डॉक्टर अपने आंखों से प्रॉक्टोस्कॉपी करके आपका डायग्नोसिस अत्यंत कम पैसों में कुशल तरीके से करा देगा.  वही चीजें इन व्यवसायियों को द्वारा एक प्रॉक्टोस्कॉपी वीडियो बनाकर आपको कंप्यूटर के मॉनिटर पर दिखाकर डायग्नोसिस करने का दावा करते हैं और इसके लिए आप से अच्छे खासे पैसे वसूलते हैं.  कहीं जगह पर इसके ₹3000 तक लिए जाते हैं.  यह केवल आपसे पैसे ज्यादा लेने के लिए लगाई गई मशीनें होती है.  अगर आप चाहते हैं कि आपका डायग्नोसिस इन मशीन द्वारा हो तो भी आप एक कुशल एलोपैथी सर्जन ही चॉइस कर ले.  मैं ऐसा नहीं कहता कि आयुर्वेदिक डॉक्टर अच्छे से जांच नहीं कर पाएंगे. 

                बहुत सारे एलोपैथी सर्जन डॉक्टर जो है वह इस पाइल्स फिशर के ट्रीटमेंट में ज्यादा इंटरेस्ट नहीं दिखाते. उनका इंटरेस्ट केवल कुछ अन्य तरह की सर्जरी करने में होता है. और इसलिए वह आपको इस तरह के बीमारी में ज्यादा सहायक नहीं बन सकते.  इसलिए आप डॉक्टर के प्रोफाइल चेक करें.  डॉक्टर ने अपने इंटरेस्ट में लिखा है कि वह प्रॉक्टोलॉजी प्रैक्टिस करता है तो इसका मतलब है कि वह पाइल्स फिशर फीसतुला आदि बीमारियों के इलाज में इंटरेस्ट दिखा रहा है.  अगर वह कहता है कि मैं केवल लेप्रोस्कोपी सर्जरी करूंगा तो इसका मतलब है कि उसको पाइल्स के ऑपरेशन या इलाज में कोई इंटरेस्ट  नहीं है. 

fisher piles
piles and fissure

           प्रॉक्टोलॉजी  नाम की एक विशेष ब्रांच आज के दिनों में उभरकर सामने आ रही है. अगर आपको कहीं भी एलोपैथी सर्जन के नाम के आगे प्रॉक्टोलॉजिस्ट लिखा हुआ दिखता है तो यह जान ले कि यह एक सर्जरी की ब्रांच है.  यह ब्रांच  पाइल्स संबंधित बीमारियों के लिए अच्छी साबित होती है.  प्रॉक्टोलॉजी डॉक्टर इन बीमारियों में विशेष प्रयत्न करके विशेष  ज्ञानहासिल करते हैं और उनकी रूचि इन ऑपरेशन में बनी रहती हैं.  इन ऑपरेशन में रुचि दिखाने के कारण ही वह इनके  तद्न्य बन जाते हैं.

piles and fissure
piles and fissure