ANAL FISTULA SURGERY ; BHAGANDER OPERATION

फिस्टुला और ऑपरेशन

 

दोस्तों,

आज मैं आपको फिस्टुला के बारे में कुछ खास बातें बताने जा रहा हूं .

आप  जानकर हैरान होंगे की फिस्टुला का  कोई  ‘दवाई का इलाज’  नहीं होता है.  इसके लिए ऑपरेशन ही एकमात्र इलाज होता है.  अब आपको दूसरी बार यह जानकर हैरानी होगी की फिस्टुला के   कम से कम 10 प्रकार के ऑपरेशन होते हैं.  इसके बावजूद भी कोई भी ऑपरेशन हंड्रेड परसेंट सक्सेस फुल नहीं है.

 

फिस्टुला क्या होता है

 

मैं आपको आज फिस्टुला नाम की बीमारी से अवगत कराना चाहता हूं ताकि आप गलत उपचार पद्धतियों में पैसा ना गवाह.  फिस्टुला 1  मेडिकल वर्ड है जिसे  हिंदी  में  ‘भगंदर’  कहा जाता है, या नाली घाव भी कहा जाता है.

जैसा कि इसको नाली घाव कहा जाता है वैसा ही रूप इसमें नाली का होता है. इसमें अपने संडास की अतल के साथ बाहर त्वचा की ओर एक नली बन जाती है. जनरली  यह नली अपने आप नहीं बनती.

सबसे पहले लैट्रिन की जगह के आजू-बाजू में  मवाद बन जाता है. और यह मवाद फूटकर बाहर आता है तो चमड़ी के बाहर जिस जगह से मवाद बाहर आता है उसी जगह पर एक छेद बन जाता है जो सुकता ही नहीं  है.  इसी छेद का संबंध अंदर लैट्रिन की आत से होता है .

इसका मतलब यह होता है कि उस नली  से लैट्रिन का पानी या लैट्रिन नली से गुजरती है और  पस बनकर चमड़ी के छेद से बाहर आती है.

 

ऑपरेशन क्यों फेल होते

 

अब आप यह सोचेंगे कि जब डॉक्टर इतना सब कुछ फिस्टुला के बारे में क्लियर जान लेते हैं कि फिस्टुला की नली कहा से कहा तक बनी होती है तो फिर उसका सटीकता से पूरी नली निकालने का ऑपरेशन क्यों नहीं कर सकते.

और इतने सारे ऑपरेशन में से क्या कोई भी ऐसा हंड्रेड परसेंट सक्सेसफुल ऑपरेशन नहीं बन सकता?  अगर हंड्रेड परसेंट सक्सेसफुल ऑपरेशन नहीं है तो उसका क्या कारण है.

 

दोस्तों इसका कारण अपनी लैट्रिन की जगह की बनावट है.  दूसरा कारण है कि यही एक ऐसी सर्जरी है जिसमें उस जगह का काम हम बंद नहीं कर सकते.

 

आपको मैं एग्जांपल देना चाहता हूं.

अगर हम पेट का ऑपरेशन करते हैं तो तीन-चार दिन के लिए पेट को आराम देने के लिए खाना पीना बंद कर देते हैं.

अगर हम हड्डी का ऑपरेशन करते हैं तो 1 महीने के लिए हड्डी को हिलना रोक देते हैं, उसको हम प्लास्टर लगा देते हैं.

अगर हम पेशाब के प्रॉब्लम का ऑपरेशन करते हैं तो पेशाब में नली डालकर पेशाब करने के लिए भी आराम हो जाता है.

 

पर ऐसा लैट्रिन के साथ नहीं हो सकता.

लैट्रिन ऑपरेशन के बाद दो-तीन दिन बंद कर दिया जाए ऐसा हो नहीं सकता और यही लैट्रिन हमारे ऑपरेशन को कुछ हद तक असफल बनाती है.

 

फिस्टुला की शुरुवात

 

इसकी शुरुवात लैट्रिन के जगह पर पस बनने से होती है .

अगर अगर पस को अपने आप फूटने के लिए छोड़ दिया जाए तो उसके आजू बाजू में फैलने के चांसेस ज्यादा होते हैं.

वहा Ischiorectal Abscess बनने के चांसेस ज्यादा होते हैं.  कभी कभी इसमें  सेप्टीसीमिया भी हो सकता है और ऐसे में जान का खतरा बना रहता है.

अगर मवाद  फूटने की  बजाय बढ़ जाता है तो मरीज को ज्यादा दिन तकलीफ सहन करना पड़ता है. और ऐसे में  एक  ‘सिंपल फिस्टुला’  के  ‘कॉम्प्लिकेटेड फिस्टुला’  बनने के चांसेस रहते हैं.

और इसीलिए अगर पस बनता है तो डॉक्टर के पास जाकर जल्द से जल्द ऑपरेशन ही करना चाहिए.

 

पस निकलने के बाद फिस्टुला बनना

 

ऑपरेशन के बाद अगर मरीज़ को फिस्टुला बनता है  (जो ५० % केसेस में होता है) तो  ज्यादातर मरीज यह समझते हैं कि डॉक्टर ने जो मवाद का जो ऑपरेशन किया वह फेल हो गया.  और उसी के कारण फिस्टुला बन गया.

लेकिन ऐसा नहीं है.  आप किसी भी बड़े डॉक्टर की राय ले सकते हैं.  इंटरनेट पर इसके लिए सर्च कर सकते हैं.  और जानकारी पा सकते हैं कि फिस्टुला मवाद बनने के बाद क्यों बनता है.  और इसके बनने के कितने परसेंट चांसेस होते हैं.

लैट्रिन के जगह का पस बनने के बाद फिस्टुला बनना एक नार्मल कोर्स माना जाता है . और फिस्टुला नहीं बनेगा इसकी ग्यारंटी कोई भी डॉ. नहीं दे सकता.

 

ऑपरेशन की सच्चाई

 

आइए अब मैं आपको इसका ऑपरेशन क्यों इतना डिफिकल्ट होता है यह बताना चाहूंगा .

 

जैसा कि पहले ही मैं आपको बता चुका हूं कि इस जगह का ऑपरेशन होने के बाद लैट्रिन चालू ही रहती है.  उसी वजह से वहां पर फिर से इंफेक्शन के चांसेस रहते हैं जो ऑपरेशन को असफल  बनाते हैं.

Sphincter मसल.

 

दूसरी मैन वजह इसकी जो है उसको हम बोलते हैं Sphincter मसल.

 

इस मसल का मेन काम लैट्रिन के द्वार को खोलना और बंद करना होता है.

अगर यह मसल ऑपरेशन के दौरान डैमेज हो गई तो हम हमारी लैट्रिन को रोक नहीं पाएंगे. नतीजा लैट्रिन अपने आप बहने लगेंगी  और मरीज  के कपड़े दिन भर खराब होते रहेंगे.  और जब तक इस मसल को फिर से ऑपरेशन करके हम ठीक नहीं करते तब तक लैट्रिन बहते रहेंगी.

दोस्तों सुनने में आपको बड़ा अजीब लग रहा होगा कि अगर मसल डैमेज हो गई तो क्या उसको जोड़ा  नहीं जा सकता.  पर हां दोस्तों इस मसल को जोड़ना वाकई बहुत डिफिकल्ट काम होता है.  क्योंकि यह मसल बहुत बारीक और नाजुक होती है.

एक बार अगर कट गई तो उसको जोड़ते समय वह अपने आप फटने लगती है और उस वजह से उसको ठीक से जोड़ा नहीं जा सकता. और इसी डर की वजह से इस मसल को ऑपरेशन के दौरान ना काट कर ही ऑपरेशन करना उचित माना जाता है.

अगर मसल काटना भी पढ़े तो कम से कम काट के ही ऑपरेशन करने की कोशिश की जाती है. ताकि मरीज को ऑपरेशन के बाद लैट्रिन बहने की मुसीबत से न जूझना पड़े.

क्योंकि फिस्टुला की बीमारी में वैसे तो कोई दर्द या बहुत ज्यादा दिक्कत होती नहीं है.  और अगर ऑपरेशन के बाद लैट्रिन बहना शुरू रही तो फिर उसकी जिंदगी बेहाल हो जाएंगी.

और ऐसे में वह डॉक्टर को ऑपरेशन फेल हो गया यह कहे कर उसको कोर्ट कचहरी की धमकियां दे सकता है.

और इसलिए सभी डॉक्टर इस मसल को न काटकर ऑपरेशन करते हैं.  पर कॉम्प्लिकेटेड फिस्टुला इस  मसल के आर-पार जाती है.  और इसलिए उसका ऑपरेशन फेल होने के chances  रहते हैं.

 

 

तो  दोस्तों यह हो गई जानकारी की फिस्टुला के ऑपरेशन क्यों फेल होते हैं.  अगर आपको और भी जानकारी  चाहिए  तो आप मुझे यह मेल कर सकते हैं.

Masram2017@gmail.com

 

 

धन्यवाद.